


उत्तर प्रदेश के राजनीतिक मैदान में आजमाए गए पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स को क्या बिहार के राजनीतिक मैदान में भी उतरा जा सकता है? क्या यह नया राजनीतिक समीकरण बिहार की राजनीति को प्रभावित कर पाएगा? यह सारे सवाल इस समय लखनऊ से लेकर पटना तक के राजनीतिक गलियारे में खूब चर्चा बटोर रहे हैं। दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव साल के आखिर में होने वाले हैं। अक्टूबर-नवंबर में प्रस्तावित बिहार चुनाव को लेकर प्रदेश की राजनीति को गरमाने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, अब तक प्रदेश में चुनावी हवा बनती नहीं नहीं दिख पा रही है। जनता चुप है। वाटर खामोश हैं। राजनीतिक दल पूरे जोर-शोर के साथ सड़कों पर उतरे हुए हैं।
बिहार के चुनावी मैदान में पहले जान सुराज पार्टी के मुखिया और पूर्व राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीतिक हवा को बदलने की कोशिश की। पदयात्राएं कर पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया। अब कुछ इसी तरह की कोशिश करते कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दिख रहे हैं।
PDA से MY को जोड़ने की कोशिश
ऐसे में अब प्रयोग का दौर शुरू हो गया है। उत्तर प्रदेश की राजनीति के आजमाए गए पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी PDA पॉलिटिक्स को लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के मुस्लिम-यादव यानी MY समीकरण से जोड़ने की कोशिश की जा रही हैं। दरअसल, 28 अगस्त को अखिलेश यादव राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा में शामिल होने वाले हैं। इसमें वे बिहार में दलित-पिछड़ों को एनडीए के खिलाफ एकजुट होने का नारादे सकते हैं।